जिन्दगी तू इतनी
उलझी सी क्यूँ है…
सवाल तो है सारे तेरे,
फिर जवाब क्यूँ हो हमारे …
जख्म दे दे तू और,
मरहम हम लगा ले…
जिन्दगी बता तू इतनी
उलझी सी क्यूँ है…
छिपे तू खुद और,
तुझे ढूंढे हम…
खेल खेले तू और,
खिलौना बने हम…
शिकवा तुझसे, शिकायतें भी तुझसे…
फिर भी कहते रहें हम,
तुझसे नाराज नहीं जिन्दगी…
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